चंडीगढ़ : उत्तराखंड सरकार की ओर से स्कूली पाठ्यक्रम में भागवत गीता के श्लोक शामिल किए जाने को लेकर एक बार फिर से विरोध के स्वर उठने लगे हैं। इसी बीच हरियाणा के शिक्षा मंत्री महीपाल ढांडा ने गीता का विरोध करने वालों को नसीहत देते स्पष्ट संदेश देने का काम किया है। चंडीगढ़ में पत्रकारों से बातचीत में महीपाल ढांढा ने यदि कुछ लोग गीता का विरोध करते हैं तो करते रहने दो, हमें उनकी जरूरत नहीं है।
हरियाणा ने गीता को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया
उत्तराखंड की सरकार द्वारा गीता को पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने पर खुशी जाहिर करते हुए हरियाणा के शिक्षा मंत्री महीपाल ढांडा ने कहा कि देश में सबसे पहले 2014 में प्रदेश की भाजपा सरकार ने गीता जयंती महोत्सव मनाना शुरू किया था, जिस कारण से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गीता की अलग पहचान बनी। उन्होंने कहा कि आज इंसान जिस ज्ञान से वंचित है, गीता से उसे अर्जित कर आसानी से दुनिया की हर समस्या के पार उतर सकता है। गीता जिंदग को सुगम, सरल और आसान बनाकर व्यक्ति निर्माण करने का काम करती है।
पाठ्यक्रम में शामिल करने पर कर रहे विचार
महीपाल ढांडा ने कहा कि 2014 में हरियाणा में भाजपा की सरकार बनने के बाद प्रदेश में नैतिक शिक्षा को अनिवार्य किया गया। इसमें 6वीं से 8वीं, 9वीं से 10 और 11वीं से 12वीं कक्षा के लिए अलग-अलग पुस्तकों का निर्माण किया गया, जिसमें बच्चे की आयु के अनुसार श्लोक शामिल किए गए। उन श्लोकों का चयन कर उन्हें नैतिक शिक्षा में डाला गया। उन्होंने बताया कि केवल गीता ही नहीं, बल्कि रामायण और इंसान के जीवन से संबंधित अन्य ग्रंथों के सभी प्रेरक प्रसंग भी नैतिक शिक्षा की उन पुस्तकों में डाले गए हैं। उत्तराखंड की तरह से ही हरियाणा में भी गीता को पाठ्यक्रम में शामिल करने को लेकर विचार किया जा रहा है।
दिमागी असंतुलन वाले कर रहे विरोध
उत्तराखंड के पाठ्यक्रम में गीता को शामिल करने का विरोध करने वालों को हरियाणा के शिक्षा मंत्री ने कहा कि दिमागी असंतुलन वाले ही इसका विरोध कर रहे हैं। किसी अच्छे कार्य का विरोध करना कहा तक जायज है। उन्होंने बिना किसी का नाम लिए कहा कि जो लोग एक पुस्तक से बाहर नहीं निकल पाए और उससे बाहर निकलने की सोचने तक की उन्हें इजाजत नहीं है। ऐसे तथाकथित लोग खुद को ज्ञानी और विद्वान बोलकर गीता के पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने का विरोध कर रहे हैं तो करते रहे, हमें उनकी जरूरत नहीं है।
दुनिया की साइंस एक प्रतिशत भी नहीं
महीपा ढांडा ने कहा कि भारत केवल पुस्तकों से बंधा देश नहीं है। आज पूरी दुनिया में संत रिषी मुनिराज केवल भारत का ही व्यक्ति है, जिसने खुद को ब्रह्म बताया है। आज कोई भी व्यक्ति अपने अध्यात्म को ऊंचाइयों को हासिल कर एक नई गीता लिख सकता है। भारत की धर्म-संस्कृति के सामने दुनिया की साइंस एक प्रतिशत भी नहीं पहुंच पाई है।
धर्म का मतलब जीवन जीने की पद्धति
ढांडा ने कहा कि धर्म का मतलब हिंदू-मुस्लिम नहीं,बल्कि धर्म का मतलब जीवन जीने की पद्धति है। वह कितनी विकसित हुई है। हमारी जीवन पद्धति इतनी विकसित है कि दुनिया की साइंस उसके एक प्रतिशत तक नहीं पहुंच पाई। उन्होंने कहा कि हम संकीर्ण सोच को बढ़ावा नहीं देते।

Author: Political Play India



