Lok Sabha Elections से पहले भले ही किसान आंदोलन शांत हो गया हो, लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर सभी फसलों की खरीद का कानून नहीं बनने को किसान संगठन और विपक्ष मुद्दा बना सकते हैं। Haryana सरकार का दावा है कि वह 14 फसलें MSP पर खरीदती है, लेकिन किसान संगठन इस दावे को सिरे से खारिज करते हैं. किसान संगठन 23 फसलों को MSP कानून के दायरे में लाने की मांग कर रहे हैं.
किसान संगठनों के मुताबिक, गेहूं और धान को छोड़कर बाकी सभी फसलें किसानों को औने-पौने दाम पर बेचनी पड़ रही हैं। इसके अलावा, कभी-कभी फसलों की खरीद समय पर शुरू नहीं होती है और कभी-कभी किसान MSP पर फसल बेचने के लिए मेरी फसल मेरा ब्योरा पोर्टल पर पंजीकरण नहीं कर पाते हैं। इसलिए किसानों को उचित लाभ नहीं मिल पाता है. किसानों की मांग है कि जब तक MSP पर कानून नहीं बनेगा तब तक समाधान नहीं निकल सकता. Congress ने चुनाव की घोषणा से पहले ही घोषणा कर दी थी कि केंद्र में उनकी सरकार बनते ही MSP कानून लागू किया जाएगा.
हालांकि Congress ने 2018 के Rajasthan विधानसभा चुनाव में MSP कानून बनाने का वादा किया था, लेकिन पांच साल तक सरकार चलाने के बाद भी एमएसपी कानून नहीं बन सका. वहीं, Haryana की BJP सरकार का कहना है कि किसानों को उनकी फसल का उचित लाभ मिल रहा है. इसलिए वह किसी के बहकावे में नहीं आएंगे। हरियाणा सरकार का दावा है कि वह धान, गेहूं, जौ, सरसों, मक्का, बाजरा, मूंग, मूंगफली, अरहर, उड़द, तिल, चना, सूरजमुखी और कपास MSP पर खरीदती है।
पिछले साल Haryana सरकार ने बाजरे का MSP 2500 रुपये प्रति क्विंटल तय किया था, लेकिन HAFED और Haryana स्टेट वेयरहाउसिंग ने इसे 2200 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से खरीदा और शेष राशि भावांतर योजना के तहत किसानों के खातों में जमा करने का दावा किया। वहीं, पिछले साल किसान संगठनों ने MSP पर सूरजमुखी की खरीद के लिए बड़ा आंदोलन चलाया था, लेकिन सरकार ने सूरजमुखी की फसल MSP पर नहीं खरीदी, बल्कि भावांतर योजना के तहत इसकी भरपाई की.
सूरजमुखी की MSP 6400 रुपये प्रति क्विंटल थी. बाजार में इसकी कीमत 4900 रुपये प्रति क्विंटल थी. सरकार ने भावांतर योजना के तहत किसानों को एक हजार रुपये दिये. इस हिसाब से किसानों को सूरजमुखी का दाम 5900 रुपये प्रति क्विंटल मिला, जो MSP से 500 रुपये कम था. इसी प्रकार नरमा (कपास) भी MSP पर नहीं खरीदा जाता है।
पहली बार धान पर MSP दी गई
1960 के दशक में किसानों को अधिक उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करने हेतु MSP लागू करने की व्यवस्था की गई। पहली बार धान की फसल पर MSP 1964-65 में दी गई थी. तब धान का MSP 33.50 रुपये प्रति क्विंटल से 39 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया था. 1966-67 में पहली बार गेहूं पर MSP 54 रुपये प्रति क्विंटल दी गई. परंतु आज जब अनेक खाद्यान्नों का अधिक उत्पादन हो रहा है। गोदामों में अनाज सड़ रहा है. ऐसे में MSP की जरूरत पर सवाल उठ रहे हैं.
MSP कानून लागू करने में चुनौतियां
1. आय के सीमित स्रोत होने के कारण सरकार सभी फसलों पर MSP नहीं दे सकती। इसके लिए बड़े बजट की जरूरत होगी.
2. अगर सरकार कानून लागू भी कर दे तो भी अनाज खरीदकर भंडारण करना मुश्किल हो जाएगा. वर्तमान में भी अनाज का बड़ा हिस्सा खराब हो जाता है।
3. किसान वही फसलें उगाएंगे जिन पर MSP लागू हो. इससे भूमि की उर्वरता प्रभावित होगी।
MSP का लाभ तभी जब सरकारी खरीद हो
MSP का मतलब यह है कि किसानों को उनकी फसल का न्यूनतम मूल्य हर हाल में मिलना चाहिए। लेकिन ये इतना आसान नहीं है. किसानों को MSP का लाभ तभी मिलता है जब उनकी फसल सरकार द्वारा खरीदी जाती है। लेकिन किसी कारण से सरकार किसान की फसल नहीं खरीदती है, इसलिए वह इसे निजी एजेंसियों को औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर होता है। इसीलिए किसान MSP कानून की मांग कर रहे हैं. किसान संगठनों का कहना है कि MSP कानून बनने से किसानों को काफी फायदा होगा. कानून बनने से किसानों को सरकारी मंडियों या सरकारी एजेंसियों के बाहर भी MSP से कम कीमत पर अपनी फसल बेचने की मजबूरी से मुक्ति मिल जाएगी। आज भी किसान धान और गेहूं को छोड़कर अपनी 40-50 प्रतिशत फसल निजी क्षेत्र को बेच देते हैं।
इसलिए फसलों को उचित लाभ नहीं मिल पाता है
किसानों को अपनी फसल से उचित लाभ क्यों नहीं मिल पाता, यह सरसों की खरीद से समझा जा सकता है। Haryana सरकार ने 25 मार्च से MSP पर सरसों की खरीद शुरू कर दी है. जबकि किसानों की फसल दस दिन पहले ही पककर तैयार हो गई थी. फसल खरीद में देरी को देखते हुए किसानों ने अनाज मंडी में ही 4500 से 5000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से सरसों बेची. जबकि सरकार ने सरसों का MSP 5650 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है.
इस हिसाब से किसानों को प्रति एकड़ आठ से दस हजार रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। वहीं, MSP पर फसल बेचने के लिए किसानों को मेरी फसल मेरा ब्योरा पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी है। पोर्टल पर पंजीकरण के बाद ही किसानों के मोबाइल पर OTP आता है, जिसे दिखाने के बाद किसानों को मंडी के अंदर फसल ले जाने के लिए गेट पास जारी किया जाता है। ऐसे कई किसान हैं जो पोर्टल पर अपना पंजीकरण नहीं करा पा रहे हैं। फिलहाल रबी फसलों की खरीद चल रही है. इसके लिए केवल 68 फीसदी किसान ही पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करा पाए हैं और अब रजिस्ट्रेशन बंद कर दिया गया है. ऐसे में बाकी 32 फीसदी किसान अपनी फसल MSP पर नहीं बेच पाएंगे. उन्हें अपनी फसल निजी क्षेत्र में ही बेचनी होगी।
पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन की बाध्यता समाप्त की जाए और MSP से कम पर किसी की फसल न खरीदी जाए।
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के पूर्व कुलपति केएस कोचर ने कहा कि हरियाणा में केवल गेहूं और धान की फसल ही MSP पर खरीदी जाती है। गेहूं और धान एमएसपी पर बिकते हैं क्योंकि ये देश की जरूरत है. कपास, मूंग और तिलहन जैसी अन्य फसलों पर भी MSP लागू की जाती है, लेकिन किसानों को उचित लाभ नहीं मिलता है। इसमें सबसे बड़ी समस्या रजिस्ट्रेशन की है. अब गांव का किसान अपनी फसल का रजिस्ट्रेशन कैसे कराए?
इसके लिए उसे कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। जबकि आजकल सैटेलाइट इमेजिंग के जरिए किसान का रकबा आसानी से पता चल जाता है. किसान भी नहीं चाहते कि सरकार उनकी फसल MSP पर खरीदे. वे बस इतना चाहते हैं कि फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय हो, ताकि कोई भी किसान की फसल उस तय दर से कम पर न खरीदे. अब कई कॉरपोरेट घराने फसल खरीदते हैं। तो फिर इसमें दिक्कत क्या है? अगर कोई ऐसा करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए. पूर्व VC का कहना है कि सरकार को फसलों के साथ-साथ डेयरी, मछली पालन, मशरूम, अंडे और फलों पर भी MSP देना चाहिए.
सरकार का दावा- किसानों के खातों में MSP के 90 हजार करोड़ रुपये जमा
Haryana सरकार ने दावा किया है कि उसने पिछले सात सीजन में 14 फसलें MSP पर खरीदी हैं. सरकार ने इन फसलों की खरीद पर किसानों के खातों में लगभग 90 हजार करोड़ रुपये का भुगतान किया है। भावांतर मुआवजे के तहत किया गया भुगतान इसके अतिरिक्त है। भावान्तर योजना में बाजरा उत्पादक किसानों को मात्र 836 करोड़ रूपये का भुगतान किया गया है। सरकार ने यह भी दावा किया है कि हर सीजन में लगभग 10 लाख किसान मेरी फसल-मेरा ब्योरा पोर्टल पर अपनी फसलों का विवरण देते हैं। यह बाजार हस्तक्षेप में रणनीति तैयार करने के लिए सरकार को उपयोगी जानकारी प्रदान करता है।
किसान संगठन का आरोप- प्राइवेट सेक्टर को फायदा पहुंचा रही सरकार
भारतीय किसान यूनियन (चढूनी गुट) के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी का कहना है कि हम सिर्फ MSP के लिए संघर्ष कर रहे हैं. अगर सरकार MSP दे रही होती तो किसान आंदोलन क्यों करते? सरकार कहती है कि वह MSP दे रही है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है. सरकार ने सरसों की खरीद तब शुरू की जब 60 फीसदी किसानों ने निजी क्षेत्र को औने-पौने दाम पर फसल बेच दी थी. इतनी देर से खरीदारी शुरू करने की क्या जरूरत है? दरअसल, इसके पीछे भी सरकार ही है. खरीद जितनी देरी से शुरू होगी, निजी क्षेत्र को उतना ही फायदा होगा। निजी क्षेत्र के लोग किसानों की मजबूरी का फायदा उठाते हैं और उनकी फसल को औने-पौने दाम पर खरीद लेते हैं। इसलिए हमारी मांग है कि सरकार MSP पर कानून बनाये.
विपक्ष की प्रतिक्रिया
हम कई वर्षों से MSP का मुद्दा उठा रहे हैं। Haryana में किसानों के साथ धोखा हो रहा है. इस मुद्दे को विधानसभा में भी उठाते रहे हैं. लेकिन सरकार अपनी बात के आगे किसी की भी सुनने को तैयार नहीं है. मेरी फसल मेरा ब्यौरा पोर्टल भी बंद किया जाए। पोर्टल को लेकर किसान काफी परेशान हैं। Congress ने ऐलान किया है कि जिस दिन केंद्र में हमारी सरकार बनेगी हम MSP कानून लागू करेंगे. -भूपेंद्र सिंह हुड्डा, Haryana के पूर्व मुख्यमंत्री।
सरकार का पक्ष
Haryana का किसान अब समझदार हो गया है। उन्हें अपनी फसल से पर्याप्त मुनाफा हो रहा है। पिछले दिनों हुए आंदोलन में Haryana के किसानों ने हिस्सा नहीं लिया था. इससे पता चलता है कि वह संतुष्ट हैं. हम ज्यादातर फसलों पर MSP दे रहे हैं. फसलों पर मुआवजा भी देश में सबसे ज्यादा है। यह बात विपक्ष को हजम नहीं हो रही है. फसलों की खरीद निश्चित समय पर ही की जाती है। पिछले वर्ष भी इसी समय खरीद शुरू हुई थी। Haryana के किसानों को MSP का लाभ मिले इसके लिए फसलों का पंजीकरण जरूरी है। हमारी सरकार में ही फसल खरीद का पैसा सीधे किसानों के खाते में जाता है। बीच में कोई बिचौलिया नहीं है. -कंवरपाल गुर्जर, कृषि मंत्री, Haryana सरकार।